जैव सामग्री के समांगी न होने के कारण उसमें व्युत्पन्न तनाव क्षेत्र (स्ट्रेन फील्ड) कोशिका संरेखण (अलाइनमेंट) को कैसे प्रभावित करते हैं ? आईआईटी मुम्बई के शोधकर्ताओ द्वारा विकास, रोग एवं ऊतक अभियांत्रिकी के क्षेत्र में कोशिका व्यवहार संबंधी हमारे ज्ञान को विस्तार देता एक नया अध्ययन।

ब्रह्मांडीय रव के माध्यम से बैंग विस्फोटों की खोज

Mumbai
29 मई 2025
दो विशाल कृष्ण विवरोंके एकत्रित होने की प्रक्रिया में होने वाले विद्युत-चुम्बकीय उत्सर्जन का सिमुलेशन [NASA/GSFC]

हम अपने ब्रह्मांड को "देख" सकते हैं क्योंकि हमारे नेत्र ऊर्जा क्वांटा या फोटॉन नामक ऊर्जा पैकेट्स या विद्युत-चुम्बकीय (इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक) तरंगों के रूप में प्रकाश का संसूचन कर सकते हैं। यद्यपि सूचना सम्प्रेषण हेतु हमारा ब्रह्मांड विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के अतिरिक्त अन्य साधनों का भी उपयोग करता है, जैसे कि नव्यसा ज्ञात गुरुत्वाकर्षण तरंगें (gravitational waves)। ये तरंगें तब उत्पन्न होती हैं जब विशाल पिंडों के युग्म, जैसे कि अत्यधिक चुंबकीय न्यूट्रॉन तारे तथा कृष्ण विवर (ब्लैक होल), एक दूसरे की ओर तीव्रता से त्वरित होते हैं एवं अंततः एकाकार हो जाते हैं। वर्तमान में वैश्विक गुरुत्वाकर्षण तरंग सहयोग नेटवर्क में अमेरिकी लायगो (LIGO), यूरोपीय व्हर्गो ग्रेविटेशनल वेव इंटरफेरोमीटर (Virgo) तथा जापानी कामिओका ग्रेविटेशनल वेव डिटेक्टर (KAGRA) सम्मिलित हैं, जो चरम गुरुत्वाकर्षण अंतःक्रियाओं से निर्मित गुरुत्वाकर्षण तरंग संकेतों को ग्रहण करने में सक्षम हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई के भौतिक विज्ञान विभाग के प्राध्यापक वरुण भालेराव एवं उनका शोध दल एक महत्वपूर्ण प्रश्न के समाधान हेतु शोधरत हैं: क्या दो कृष्ण विवरों (ब्लैक होल) का विलय, एक ‘प्रकाश’ संकेत (विद्युत-चुम्बकीय तरंग संकेत) उत्पन्न कर सकता है, अथवा इसके लिए युग्म में से किसी एक पिंड का न्यूट्रॉन तारा होना आवश्यक है? वे न्यूट्रॉन तारों के युग्मों, कृष्ण विवर युग्मों अथवा न्यूट्रॉन तारा-कृष्ण विवर युग्म के विलय से उत्पन्न हुई गुरुत्वाकर्षण तरंगों के साथ एक विद्युत-चुम्बकीय संकेत के संसूचन (डिटेक्शन) हेतु अनुसंधानरत हैं। 

उपरोक्त प्रश्न का समाधान इन गुरुत्वाकर्षण तरंग घटनाओं को वर्तमान अवलोकन सुविधाओं के साथ देख पाने की हमारी क्षमता में अत्यधिक वृद्धि करेगा, क्योंकि गुरुत्वाकर्षण तरंगों की तुलना में विद्युत-चुम्बकीय तरंगों का संसूचन सरल है। गुरुत्वाकर्षण तरंग स्रोतों के अभिलक्षणों (कैरेक्टरिस्टिक्स) का प्रतिरूपण (मॉडलिंग) करने तथा, अंततः पिंडों के विलय के परिणामस्वरूप उत्पन्न उच्च-ऊर्जा प्रकाश की उत्सर्जन प्रणाली का बोध कराने में भी उक्त प्रश्न का उत्तर सहायक होगा। वैश्विक गुरुत्वाकर्षण तरंग सहयोग नेटवर्क ने वर्ष 2017 में अब तक के 90 संसूचनों (डिटेक्शन्स) में केवल एक बार किसी गुरुत्वाकर्षण तरंग के साथ विद्युत-चुम्बकीय संकेत को संयुक्त रूप से देखा है। विशिष्ट रूप से यह दो न्यूट्रॉन तारों के विलय से संबंधित था, जिसमें गामा-किरण विस्फोट (बर्स्ट) से लेकर विलय की घटना के कुछ दिनों उपरांत के दृश्य प्रकाश तक के संकेत थे। किंतु अब तक हमें कृष्ण विवर युग्म अथवा न्यूट्रॉन तारा-कृष्ण विवर युग्म के विलय से उत्पन्न विद्युत-चुम्बकीय संकेतों के संबंध में कोई जानकारी नहीं है।

इस शोधकार्य में संलग्न गौरव वरटकर समझाते हैं, “यदि दो कृष्ण-विवरों का विलय, क्ष-किरणों (X Rays) का उत्सर्जन करता हैं, तो यह इस चरम उच्च-ऊर्जा युक्त टक्कर का निर्धारण करने वाले, भौतिकी के मूलभूत सिद्धांतों पर हमारी वर्तमान समझ को चुनौती देने जैसा होगा। तथा उनकी गतिकी (डायनामिक्स) एवं ऊर्जा विमोचन (एनर्जी रिलीज़) प्रक्रियाओं को यह नए सिरे से प्रतिपादित करेगा। ऐसा माना जाता है कि ये असामान्य घटनाएं एक्स-रे विस्फोट (बर्स्ट) उत्पन्न करती हैं, एवं इनके संसूचन के माध्यम से इनकी भौतिक प्रक्रियाओं के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी”।

ऐसी उच्च-ऊर्जा अंतःक्रियाओं के संसूचन के लिए भारत की एस्ट्रोसैट अंतरिक्ष वेधशाला में स्थापित कैडमियम जिंक टेल्यूराइड इमेजर (CZTI) आदर्श है। यह एस्ट्रोसैट पर स्थापित चार एक्स-रे उपकरणों में से एक है, तथा 20-200 keV तक विस्तारित ऊर्जा वर्णक्रम (एनर्जी स्पेक्ट्रम) में एक्स-रे का संसूचन (डिटेक्शन) कर सकता है। गौरव एवं उनके शोध दल ने एस्ट्रोसैट-CZTI का उपयोग कर ऐसे उच्च-ऊर्जा एक्स-रे उत्सर्जनों को खोजने का प्रयास किया जो LIGO-Virgo-KAGRA द्वारा अभिलेखित (रिकॉर्ड किए गए) गुरुत्वाकर्षण तरंग घटनाओं के साथ मेल खाते हों। विशिष्ट रूप से वे गुरुत्वाकर्षण तरंगों का उत्सर्जन प्रारंभ होने के 100 सेकंड के अंदर होने वाले एक्स-रे उत्सर्जन की खोज में थे।

“इस प्रकार की खोजों के लिए एस्ट्रोसैट-CZTI विशेष महत्व का है, जो अपने प्रक्षेपण के उपरांत कई विस्फोटों की खोज के साथ एक अत्यधिक सक्षम डिटेक्टर सिद्ध हुआ है," गौरव का कहना है।

शोध दल ने गुरुत्वाकर्षण तरंग संसूचक के प्रथम तीन अवलोकन सत्र के आँकड़ों का उपयोग करके संपूर्ण आकाश को व्यापक रूप से खोजा। उनकी खोज का विस्तार दो न्यूट्रॉन तारों के विलय के लिए 4570 लाख प्रकाश-वर्ष एवं दो कृष्ण विवरों के विलय के लिए 32 अरब प्रकाश-वर्ष की दूरियों तक था। एस्ट्रोसैट द्वारा किये गए लगभग 70 ऐसे गुरुत्वाकर्षण तरंग संसूचनों के अवलोकन की सहायता से, शोध दल ने प्रत्येक न्यूट्रॉन तारा-कृष्ण विवर युग्म तथा कृष्ण विवर-कृष्ण विवर युग्म का सुचारू रूप से परीक्षण किया।

अंतरिक्ष अवलोकनों की जटिलताओं के कारण खोज में कई चुनौतियां सामने आई । उदाहरण स्वरूप संभावित लक्ष्य एवं एस्ट्रोसैट के मध्य आने पर पृथ्वी अवलोकन को बाधित कर सकती है। इसके अतिरिक्त, कुछ घटनाएं एस्ट्रोसैट-CZTI की संवेदन सीमा से बाहर हो सकती हैं, अर्थात ये घटनाएं इतनी दूर हो सकती हैं कि विद्युत-चुम्बकीय विकिरण का संसूचन कर पाना ही असंभव हो जाता है। 

एस्ट्रोसैट-CZTI इन घटनाओं में से किसी का भी संसूचन एक्स-रे में नहीं कर सका। यह जानकारी अत्यधिक उपयोगी है क्योंकि यह इन घटनाओं के अभिलक्षणों (कैरेक्टरिस्टिक्स) को सीमाबद्ध करती है। इतने विशाल प्रतिचयन (लार्ज सैंपलिंग) के साथ, यह अध्ययन दृढ़तापूर्वक कह सकता है कि इन घटनाओं से प्राप्त अधिकतम दीप्ति (ब्राइटनेस) एस्ट्रोसैट द्वारा खोजी जा सकने वाली न्यूनतम दीप्ति से कम है। एस्ट्रोसैट की सीमाएं विश्व के किसी भी अन्य एक्स-रे टेलीस्कोप के समकक्ष ही हैं। ये सीमाएं विद्युत-चुम्बकीय विकिरण मॉडल को निर्धारित करने की दृष्टि से आवश्यक हैं, क्योंकि वे हमें गुरुत्वाकर्षण तरंग उत्सर्जन के साथ मेल खाने वाले विद्युत-चुम्बकीय विकिरण प्रतिरूप (मॉडल) निर्धारित करने में सहायक हैं।

भविष्य में इस शोध के विस्तार के संबंध में प्रा. वरुण भालेराव कहते हैं, “ब्रह्मांड भौतिकी की सबसे चरम प्रयोगशाला है जो हमें नित नूतन एवं रहस्यमयी घटनाओं से आश्चर्यचकित करता रहा है। कृष्ण विवर विलय की घटनाओं में एक्स-रे विस्फोटों की खोज करना, हमें भौतिक विज्ञान के प्रति मानव की समझ को मान्यता देने एवं नवीन तथा गहन सिद्धांतों की खोज करने में सहायता प्रदान करने वाला है। जब LIGO भारत का परिचालन प्रारंभ होगा, तब हम और अधिक दूरी पर हो रही कृष्णविवर विलय की घटनाओं को खोज सकेंगे। प्रस्तावित भारतीय दक्ष मिशन उनके अध्ययन के लिए क्रांतिकारी सिद्ध होगा।”

गुरुत्वाकर्षण तरंग संसूचकों के चतुर्थ अवलोकन सत्र की अक्टूबर 2025 में समाप्त होने की सम्भावना है। इसके माध्यम से दो न्यूट्रॉन तारों के विलय के लिए, कम से कम 5540 लाख प्रकाश वर्ष के विस्तार तक खोज की जा सकेगी और हमें अपने परिवेश में ब्रह्मांड से गुरुत्वाकर्षण तरंग स्रोतों के रूप में एक व्यापक प्रतिचयन (लार्ज सैम्पलिंग) प्राप्त होगा। ‘दक्ष’ भारत का भविष्य का अंतरिक्ष मिशन है, जो गुरुत्वाकर्षण तरंग स्रोतों से विद्युत-चुम्बकीय विकिरण का संसूचन करने एवं इसे समझने के लिए विशिष्ट रूप से अभिकल्पित (डिज़ाइन) किया जा रहा है। इसमें अत्यधिक संवेदनशील कैडमियम जिंक टेल्यूराइड (CZT) संसूचक के साथ संपूर्ण आकाश तक विस्तार संभव होगा।

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