
[Blood droplet - रक्त की बूँद, Desiccation - शुष्कीकरण, Toroidal deposit with nearly uniform cracks - एकसमान फटों (क्रैक्स) में प्रसारित वलयाकार निक्षेप, g - गुरुत्व बल, Receding front - पश्चगामी सिरा, Elongated deposit with differential cracking - विभेदक फटों (डिफरेन्शिअल क्रैक्स) के साथ दीर्घित निक्षेप, Advancing front - अग्रगामी सिरा]
अपराध कथाओं में बहुधा ऐसे दृश्य देखे जा सकते हैं जिनमें न्यायिक विज्ञान विशेषज्ञ (फोरेंसिक साइंस एक्सपर्ट) किसी घटना के अवशेष के रूप में प्राप्त हुए रक्त के धब्बों का विश्लेषण करते हैं एवं विभिन्न कड़ियों को जोड़कर घटना की जानकारी प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं। किंतु इस नाटकीय आकर्षण से परे रक्त के शुष्क (ड्राय) होने एवं अवशेष के रूप में प्राप्त इसके पैटर्न का विज्ञान, एक शोध का क्षेत्र है जिसके अनुप्रयोग न्यायालय तक सीमित न होकर चिकित्सा निदान एवं जैव अभियांत्रिकी तक विस्तारित हो सकते हैं। वर्षा बूँद से भी लघु, एक रक्त की बूंद की कल्पना करें, जो मंद गति से एक सतह पर सूख रही है। जल के वाष्पीकृत होते ही अंदर शेष रह गए ठोस पदार्थ, मुख्यत: लाल रक्त कोशिकाएं, प्रोटीन एवं लवण, जटिल पैटर्न निर्मित करते हैं। वैज्ञानिक भाषा में इस प्रक्रिया को शुष्कीकरण (डेसीकेशन) कहते हैं, तथा इस प्रकार प्राप्त पैटर्न यादृच्छिक (रेंडम) न होकर, इस बात के संकेत देते हैं कि रक्त वहाँ कैसे पहुंचा, विशिष्टत: कितना था एवं किस कोण पर गिरा था।
यद्यपि न्यायिक विज्ञान (फोरेंसिक साइंस) के प्रारंभिक दिनों में ही, समतल सतह (flat surfaces) पर स्थित शुष्कीकरण पैटर्न के सम्बन्ध में अध्ययन किया जा चुका है, तथापि यह प्रश्न विद्यमान था कि सतह के आनत (टिल्टेड) होने पर रक्त की बूँद का क्या होता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मुंबई के शोधकर्ताओं ने एक नवीन अध्ययन के माध्यम से इस प्रश्न का हल खोजने का प्रयास किया है, कि सतह की आनत स्थिति में रक्त की शुष्कता एवं इसकी फटों (crack) पर क्या प्रभाव होता है।
शोधकर्ता बूँद में रक्त की मात्रा एवं सतह के आनत कोण (steepness), दोनों के संयुक्त प्रभाव को समझना चाहते थे। उन्होंने लघुतम 1 माइक्रोलीटर से लेकर 10 माइक्रोलीटर तक (अर्थात सुई की नोंक के आकार से लेकर एक छोटे बटन के आकार तक) की विभिन्न बूँदों के आयतनों का व्यवस्थित परीक्षण किया। ये रक्त की बूँदें समतल (0 अंश) से लेकर 70 अंश तक प्रवण (स्टीप) काँच की विभिन्न आनत सतहों पर स्थापित की गयी। उन्होंने उच्च गति कैमरों के माध्यम से इन रक्त की सूखती हुयी बूँदों का वास्तविक समय में निरिक्षण किया, एवं सूक्ष्मदर्शी तथा सतह की ऊंचाई मापने वाले यंत्रों की सहायता से इन सूखे हुए पैटर्नों का गहन परीक्षण किया।
समतल सतह पर सूखी हुई रक्त की बूँदें विशिष्ट रूप से एक वलय के रूप में निक्षेपित (deposit;डिपॉसिट) होती हैं, जो कि गिरी हुई कॉफ़ी की बूँद से निर्मित वलय के बहुत समान है। ऐसा होने के पीछे का कारण है तरल पदार्थ का सीमा पर होने वाला तीव्र वाष्पन। इससे बूँद के केंद्र में स्थित कण बाहर की ओर खींचे जाते हैं। शुष्क रक्त वलय या कोरोना में लाल रक्त कोशिकाओं की सघनता होती है तथा यह बहुधा बाहर की ओर प्रसारित होती फटों को प्रदर्शित करता है।
किंतु जब सतह आनत (tilted) होती है तो रक्त की बूँद गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में नीचे की ओर गति करने लगती है। गुरुत्वाकर्षण बल, बूँद को एक मंडप के आकर में बनाये रखने वाले पृष्ठ-तनाव (surface tension) के विरुद्ध कार्य करता है। इस लड़ाई में बूँद विकृत होकर प्रसारित हो जाती है एवं तरल पदार्थ की सतह असमान हो जाती है। रक्त की बूँद का अग्रगामी सिरा (advancing edge), अर्थात इसका निचला अर्ध भाग नीचे की ओर जाने का प्रयास करता है, जबकि पश्चगामी (receding edge) या ऊपरी अर्ध भाग स्थिर रहता है। इससे रक्त असममित रूप से निक्षेपित होता है, तथा बड़ी एवं भारी लाल रक्त कोशिकाओं पर गुरुत्वाकर्षण का अधिक प्रभाव होने के कारण वे अग्रगामी सिरे की ओर जमा होती हैं। जबकि प्रोटीन एवं लवण जैसे छोटे घटक वाष्पीकरण के कारण होने वाले (वाष्पीकरण-चालित) प्रवाह से अधिक प्रभावित होते हैं, क्योंकि ऊपरी भाग या पश्चगामी सिरे पर संपर्क कोण छोटा होने के कारण वाष्पीकरण-चालित प्रवाह सामान्यतः अधिक शक्तिशाली होता है। इस प्रकार आनत सतह पर हमें एक पृथक्करण प्रभाव देखने मिलता है, जिसमें अग्रगामी सिरे पर लाल रक्त कोशिकाओं की अधिकता होती है तथा पश्चगामी सिरे पर प्रोटीन एवं लवण जैसे छोटे पदार्थ होते हैं।
पदार्थ के असमान वितरण के फलस्वरूप पूर्ण रूप से सूख जाने पर प्राप्त हुई फटों में आश्चर्यजनक अंतर दिखाई देते हैं। सूख कर पदार्थ का सिकुड़ना फटों की उत्पत्ति का कारण है, जिससे वैसा ही तनाव उत्पन्न होता है, जैसा कि धूप में मिट्टी के सूखने पर होता है। तनाव के बहुत अधिक हो जाने पर तनाव को मुक्त करते हुए पदार्थ टूट जाता है एवं नवीन सतहें बनाता है, जैसे यहाँ पर फट की भित्तियां।
आईआईटी मुंबई के शोधकर्ताओं द्वारा ग्रिफ़िथ मानदंड नामक एक मौलिक अवधारणा का उपयोग किया गया, जिसके अनुसार फट तब निर्मित होती है जब टूटने वाले पदार्थ के द्वारा मुक्त की गयी ऊर्जा, नवीन फट की उत्पत्ति के लिए पर्याप्त होती है। उन्होंने इस सिद्धांत पर आधारित एक सरल प्रतिरूप (मॉडल) विकसित किया। इस प्रतिरूप में शुष्क रक्त पदार्थ में संग्रहीत ऊर्जा तथा रक्त एवं वायु के मध्य, साथ ही रक्त एवं काँच के मध्य स्थित अंतराफलकों (interfaces) पर, नवीन सतहों को निर्मित करने हेतु आवश्यक ऊर्जा को ध्यान में रखा गया।
उनका प्रतिरूप बताता है कि निक्षेपित रक्त (deposited blood) में फट की उत्पत्ति के लिए आवश्यक बल सूखे हुए निक्षेप की मोटाई पर निर्भर करता है। अग्रगामी सिरे की ओर जहाँ अधिक मात्रा में सूखा हुआ रक्त एकत्र हुआ, फटें अधिक मोटी एवं अधिक विस्तार तक प्रसारित थी। जबकि पतले निक्षेप वाले पश्च भाग में, फटें क्षीण थीं। इस अंतर का कारण अग्रगामी एवं पश्चगामी सिरों पर एकत्र निक्षेप का क्रमशः मोटा एवं पतला होना है।
फटों के पैटर्न भी असममित होते हैं क्योंकि आनत सतहें (tilted surface) अग्रगामी एवं पश्चगामी सिरों पर भिन्न-भिन्न मोटाई के असममित निक्षेप निर्मित करती है। अत्यधिक प्रवण कोणों एवं बड़े आयतन के साथ, बूँद स्थिर होने से पूर्व किंचित फिसल भी सकती है। इससे सूखी हुई सामग्री की एक क्षीण सी पुँछ शेष रह जाती है, जिसका अत्यधिक क्षीण होना फट निर्मित होने की संभावना को प्रायः घटा देता है।
यह अध्ययन फटों एवं शुष्कीकरण (डेसिकेशन) पैटर्न को प्रभावित करने वाले कारकों की खोज करने वाला एक महत्वपूर्ण अध्ययन है। आयतन तथा आनति (टिल्टिंग) के संयुक्त प्रभावों का व्यवस्थित रूप से परीक्षण करके यह अध्ययन दर्शाता है कि ये कारक फट की परिणामी आकृति (क्रैक मार्फोलॉजी) को कैसे परिवर्तित करते हैं। इसके साथ ही उनका प्रतिरूप फटों एवं सूखने के पूर्व बूँद की प्रारंभिक स्थिति के मध्य एक संबंध स्थापित करता है, जिसे न्यायिक विज्ञान विश्लेषण (फॉरेंसिक अनॅलिसिस) के लिए उपयोग
अध्ययन के लेखकों के अनुसार सूखी हुई बूँदो में स्थित फटें हमें बूँद के प्रारंभिक आयतन एवं संघात कोण (impact angle) के संबंध में जानकारी दे सकती हैं। यह जानकारी बूँद के प्रारंभिक संघात कोण को ज्ञात करके अपराध के पुनर्चित्रण (रीक्रिएशन ऑफ क्राइम सीन) में सहायक हो सकती है।
यद्यपि वैज्ञानिकों का प्रतिरूप निक्षेपित रक्त की मोटाई एवं फट के पैटर्न के मध्य संबंध को गुणात्मक रूप से समझाने में सफल है, किंतु कुछ ऐसे लक्षण भी देखे गए हैं जिनके पीछे छिपी सटीक क्रियाविधि की खोज यह अध्ययन नहीं कर सका है। जैसे कि रक्त की बड़ी बूँदों में केंद्रीय निक्षेप (सेंट्रल प्लेक) के स्थान पर एक केंद्रीय उभार (सेंट्रल बल्ज) का कभी-कभी दिखने वाला यादृच्छिक गठन भविष्य के परीक्षण का विषय है, जो इस जटिल प्रक्रिया के संबंध में हमारी वर्तमान समझ को सीमित करता है। केंद्रीय उभार प्रत्येक स्थिति में गठित नहीं होता है, तथा विभिन्न प्रयोगों के क्रमों में अकस्मात रूप से कभी हो जाता है। इसके पीछे जो कारण हो सकता है, वह है रक्त की बूँद के सूखते समय, प्रवाह की अस्थिरता। तथापि यह शोध कार्य विभिन्न सतहों पर रक्त के धब्बों के पैटर्न की हमारी समझ में बहुत अधिक सुधार करता है। यह जानना कि आयतन एवं सतह कोण इन पैटर्न को कैसे प्रभावित करते हैं, न्यायिक विज्ञान के परीक्षणकर्ताओं के लिए आनत सतहों पर रक्त के छींटों को समझने में सहायक हो सकता है।
आगामी कार्यों में शोध दल, रक्त की सुखी बूँदो के पैटर्न में स्थित अन्य भिन्नताओं का अध्ययन करने के इच्छुक है। अध्ययन लेखकों के अनुसार स्वस्थ एवं रोगी व्यक्तियों पर किये गए परीक्षणों में दोनों के रक्त निक्षेपों के मध्य सूक्ष्म अंतर देखा गया है। सतह की नम होने की क्षमता के अनुसार पैटर्न में भिन्नता भी फोरेंसिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है एवं ये भविष्य के अध्ययन में बायोमार्कर के रूप में देखे जा सकते है।